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तामस काया




तामस काया (सजल)


तम प्रधान है जैविक काया।

घेर चुकी है इसको माया ।।


चंगुल में यह फँसी हुई  है।

पिंड छोड़ती कभी न माया।।


विषय -वासना इसे सताती।

इसे देख कर लगती दाया।।


सूकर जैसा यही दौड़ती।

प्रभु की पाती कभी न छाया।।


उदर भरण कर घूमा करती।

पर अतृप्त यह लौकिक काया।।


भटक रही है आदि काल से।

पशुवत इन्द्रिय झूठी काया।।


परेशान यह सदा रहेगी।

रचा ब्रह्म ने दूषित काया।।


थकती फिर भी भागा करती।

अतिशय व्यकुल विषयी काया।।


भोग-रोग से सहज ग्रस्त यह।

इसकी पीछा करती माया।।


माया के बंधन में जकड़ी।

रोती -चिल्लाती है काया।।


जिसने काया गले लगाया।

उसे रुलाती गन्दी माया।।


जिसने काया को समझा है।

वह बौद्धिक-आत्मिक कहलाया।।


जिसे सत्व से सहज प्रेम है।

उसने ईश्वर को अपनाया।।


जो ईश्वर का भजनानंदी।

उसकी क्या कर सकती माया??


जिसे स्नेह है जीव मात्र से।

उसके पद तल रहती काया।।


आत्मा की काया पहचानो।

रहो इसी में फेंको माया।।


जो ईश्वर के संग विचरता।

ब्रह्म सरूप वही बन पाया।।


ब्रह्म क्षेत्र में पावन गंगा।

जो भी आया गंग नहाया।।


काया-माया मोह भंग तब।

जब लौटा मन उर में आया।।


करता पावन मंत्र जाप जो।

 उसको सत-शिव-सुंदर भाया।।





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2 Comments

Rajeev kumar jha

31-Jan-2023 12:12 PM

Nice

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Sachin dev

30-Jan-2023 05:19 PM

Nice

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